गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

तन्हा क़दम बढ़ाना आया

तन्हा क़दम बढ़ाना आया
समझो दर्द भगाना आया

जिसने खुद ही राह बनायी
उसके साथ ज़माना आया

तुम क्यों इतनी दूर खड़े थे
जब जब ठौर ठिकाना आया

उस दिल पर क्या गुजरी होगी
जिसको धोखा खाना आया

कुछ तो ख़्वाब यार ने तोड़े
खुद कुछ भरम मिटाना आया

बरसों खुद से लड़ा मुक़दमा
तब जाकर मुस्काना आया

इक पूरे जीवन के बदले
दो पल का हर्ज़ाना आया

हमने ही ये आग चुनी है
तुमको कहाँ जलाना आया

जीवन भर का हासिल ये है
बस मन को समझाना आया

ये 'आनंद' उसी का हक़ है
जिसको भाव लगाना आया

- आनंद