मंगलवार, 28 मार्च 2017

झूठ या सच राम जानें...

झूठ या सच राम जानें, मुस्कराना आ गया
ज़िन्दगी आखिर तेरा हर ग़म उठाना आ गया

कौन हो-हल्ला करे किसको पुकारे साथ को
अब मुझे तनहाइयों से घर सजाना आ गया

इसमें रत्ती भर हमारे यार की गलती नहीं
अपनी उम्मीदें ही बैरी थीं, मिटाना आ गया

आज भी आँखें छलक आयीं किसी के नाम से
मैने समझा था मुझे सबकुछ भुलाना आ गया

शोखि़यों के ज़िक्र से अब भी बहक सकता हूँ मैं
फ़र्क इतना है बहक कर होश आना आ गया

आजकल सुर्खाब के पर लग गये हैं देश को
तन्त्र को अब लोक की भेड़ें चराना आ गया

शायरों में भी सियासत की कदर बढ़ने लगी
अब मुखौटे शायरी को भी लगाना आ गया

प्यार के दो बोल सुनने को तरसता उम्र भर
जब चला 'आनंद' मातम को जमाना आ गया

- आनंद

बुधवार, 22 मार्च 2017

तुम्हारा साथ

'और तुम्हारा साथ...? '

मैं प्रतीक्षा को समय से मापता हूँ
और समय को जीवन से
जीवन को मापता हूँ तुम्हारे साथ से
और तुम्हारा साथ ... ?
छोड़ो
मैं फिर से प्रतीक्षा पर लौटता हूँ  !

मैं दुख को देह से मापता हूँ
और देह को आयु से
आयु को मापता हूँ तुम्हारे साथ से
और  तुम्हारा साथ...?
छोड़ो
मैं फिर से दुख पर लौटता हूँ

मैं मृत्यु को शान्ति से मापता हूँ
और शान्ति को प्रेम से
प्रेम को मापता हूँ  तुम्हारे साथ से
और तुम्हारा साथ...  ?
छोड़ो
मैं फिर से मृत्यु पर लौटता हूँ !

- आनंद