गुरुवार, 10 मार्च 2016

हमारा हाल भी अब ...

हमारा हाल भी अब और ही सुनाये  मुझे
सितम करे तो कोई इस तरह सताए मुझे

न जाने कौन सा ये श्राप है दुर्वासा का
शहर से मेरे वो गुजरे तो भूल जाए मुझे

दर्द की बात पुरानी हुई दुनिया वालों
अब वो रूठे तो बड़ी  देर तक हँसाये मुझे

मैं उसका अपना हूँ अक्सर वो बोल देता है
मगर ये बात वो होठों से न बताये  मुझे 

ज़िंदगी गर कोई मंज़िल है तो मिल जाएगी
हर कदम आज भी चलना वही सिखाये मुझे

अब तो आनंद भी खामोशियों में बजता है
उसी का गीत हूँ वो जैसे गुनगुनाये मुझे  !

- आनंद