मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

राम कहानी

मेरी राम कहानी लिख
कुछ आँखों का पानी लिख

ख्वाब हो गया अपनापन
तनहा उम्र नसानी लिख

तेरे बिन भी जिन्दा हैं
इतनी सी बेइमानी लिख

मगर जिंदगी चुप सी है
बिना खिले कुम्हलानी लिख

उनकी संगदिली गर लिख
मेरी भी मनमानी लिख

कुछ दुनिया के किस्से लिख
कुछ मेरी नादानी लिख

मेरी अब तक की बातें
सब नाकाम कहानी लिख

सरपट दौड़ हुआ जीवन
घाट घाट का पानी लिख

भीड़ नहीं हम हो सकते
भले राह वीरानी लिख

नाम नैनसुख पर अंधे
ये 'आनंद' का मानी लिख

- आनंद


मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

काला धन


अद्भुत जन गण मन है साहब
पंक्त्तिबद्ध जीवन है साहब

प्यार मुहब्बत, साथ, भरोसा
ये सब सच्चा धन है साहब

जिसने धन को सबकुछ माना
वो एकदम निर्धन है  साहब

औरों का दुःख जिसको छूता
वो मन नील गगन है साहब

बाहर उजली उजली बातें
अंदर भरा व्यसन है साहब

कुर्सी को तुम देश कह रहे
जनता बड़ी मगन है साहब

उम्मीदों  की फ़सल काटना
अपना अपना फ़न है साहब

खोटा है 'आनंद' जगत में
ये भी काला धन है साहब

- आनंद 

रविवार, 25 सितंबर 2016

लौटती राहों का स्वप्न

मेरी वजह से
कितने बुरे होते जा रहे हो तुम
सब ख़त्म कर दोगे न ?
मिटा दोगे अपने पाँव के निशाँ
शायद राह भी ...

मगर मेरी आँखों से निकलती है एक नदी
उसी से आऊंगा मैं तुम्हारे पास
तैरना नहीं जानता 'तुम्हारी तरह'
घाट की थाह भी नहीं
डूबना नियति है
केवल समय नहीं है नियत

पर अपने हजारों डरो के बावजूद
मैं आऊंगा एक दिन
और देखूँगा अपनी आँखों से
कैसे अपने बन जाते हैं पराये 
देखूँगा तुम्हें
जैसे मोर देखता है घन को
चकोर देखता है चन्दा को
और अगर तुमने जुल्म की इंतेहाँ ही कर दी
तो फिर...
विअसे ही देख लूँगा
जैसे चोर देखता है किसी राजकोष को
पर मैं आऊंगा जरूर
क्योंकि खुछ घटनाओं का घाट जाना ही  
अच्छा होता है मृत्यु से पूर्व,

कमरे के बिस्तर पर मरने से 
लाख गुना अच्छा है 
राहों पर चलते हुए मरना
और अगर वो राहें तुम्हारी हों
तो फिर क्या कहने ...!

- आनंद


शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

ग़रीब

ग़रीब
वह होता है
जो ... देता है
रोजगार
योजना बनाने वालों को,

चलाता है
अफ़सर से लेकर चपरासी तक
तनख्वाह से लेकर कमीशन तक
एक पूरी व्यवस्था ,

उद्योगपतियों के चेहरों को देता है मुस्कान
नेताओं को देता है
उनका हिस्सा
संसद को देता है
एक वजह
राजनीति को ... नारे
और
विदेशी बैंकों को धन

ग़रीब
कितना जरूरी है
देश की मुख्यधारा के लिए !

-आनंद 

सोमवार, 29 अगस्त 2016

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है
ये ग़म मुझे उम्मीद लगाने से मिला है

जलने का तज़ुर्बा भी बड़ी चीज़ है यारों
मुझको हवन में हाथ जलाने से मिला है

किसको फ़िकर है दर्द की, सब पूछते हैं ये
किसकी गली से किसके ठिकाने से मिला है

रिसता न गर लहू तो कोई जान न पाता
क्या ज़ख्म लिए कौन ज़माने से मिला है

बौछार दुआओं की रही मुँह के सामने
ये घाव जरा पीठ घुमाने से  मिला है

शिद्दत से पुकारो जिसे वो शख्स बारहा 
मिलने की आरजू ही मिटाने से मिला है

'आनंद' शबे-ग़म से नसीमे-सहर को चल
मौका तुझे ये नींद न आने से मिला है  !

-आनंद 

सोमवार, 30 मई 2016

सुन जीवन !

अलग अलग है तेरी हर इक धुन जीवन
कभी  गौर से तू भी इसको सुन जीवन

कहीं उदासी, ख़ामोशी, कोहराम कहीं
कहीं बज रहा तू रुनझुन-रुनझुन जीवन

दीवारों पर लिखी इबारत भी पढ़ ले
मत बुन अब, झूठे सपने, मत बुन जीवन

किसने तुझको पीर दिया क्या ज़ख़्म दिये
ऐसी बातों को मन में मत गुन जीवन

किसे पुकारे इस बेगानी बस्ती में
पत्थर के  हैं तेरे साजन सुन जीवन

या आनंद खोज ले या दुनिया ले ले
पारस छोड़ कोयले को मत चुन जीवन 

- आनंद

शनिवार, 28 मई 2016

ख़ार तो खुद ही मिले

ख़ार तो खुद ही मिले, गुल बुलाने से मिले
आपके  शहर के धोखे भी सुहाने से मिले

मुस्कराहट को लिए ग़म खड़े थे राहों में
अज़ब  फ़रेब तेरा नाम बताने से मिले

रात भर आपके अहसास ने जिंदा रक्खा
ये तज़ुर्बे भी मुझे नींद न आने से मिले

दिन महक़ उठता है मेरा जो दीद हो उसकी
उसे सुकून मेरे दिल को दुखाने से मिले

आपकी बज़्म है दिल है ख़ुशी है रौनक है
कहीं सुकून के दो पल भी चुराने से मिले

मैंने 'आनंद' की सोहबत में ग़म उठाये हैं
हमें जो  दर्द मिले वो भी बहाने से मिले

- आनंद






शनिवार, 19 मार्च 2016

जिंदगी देख तो ..

जिंदगी देख तो हम क्या कमाल कर बैठे
इश्क़ की राह में  तुझको हलाल कर बैठे

आदतें यार की ऐसी थीं कि मैं तनहा लगूँ
समझ न पाये और हम मलाल कर बैठे

जिनको दरकार थी हम हाथ उठाये रक्खें
उन्हीं से आँख मिलाकर सवाल कर बैठे

दर्द रिसता रहे  अंदर तो प्रेम सिंचता है
लबों को खोल के नाहक बवाल कर बैठे

ये लौंडपन की सनक थी कि ग़ज़ल गायेंगे
दिलों के ज़ख्म को दुनिया का हाल कर बैठे

हम तो आज़ाद हैं इतने कि मुल्क ठेंगे पर
मुद्दआ कोई हो, हम भात- दाल कर बैठे

कर न पाई जो काम दुश्मनों की फौजें भी
सभी वो काम यहीं के  दलाल कर बैठे

गुरूर मिट गया, आनंद हो गयी दुनिया
जरा सी बात से, जीवन निहाल कर बैठे

- आनंद



गुरुवार, 10 मार्च 2016

हमारा हाल भी अब ...

हमारा हाल भी अब और ही सुनाये  मुझे
सितम करे तो कोई इस तरह सताए मुझे

न जाने कौन सा ये श्राप है दुर्वासा का
शहर से मेरे वो गुजरे तो भूल जाए मुझे

दर्द की बात पुरानी हुई दुनिया वालों
अब वो रूठे तो बड़ी  देर तक हँसाये मुझे

मैं उसका अपना हूँ अक्सर वो बोल देता है
मगर ये बात वो होठों से न बताये  मुझे 

ज़िंदगी गर कोई मंज़िल है तो मिल जाएगी
हर कदम आज भी चलना वही सिखाये मुझे

अब तो आनंद भी खामोशियों में बजता है
उसी का गीत हूँ वो जैसे गुनगुनाये मुझे  !

- आनंद