सोमवार, 24 अगस्त 2015

चींटी और पहाड़

मैं आज भी वही हूँ
तुम्हें अपना भगवान मानता हुआ
सहज स्वतंत्र, बंधन हीन, अपने मन का, बेपरवाह
कौतुकी, मायामय, सबकुछ खेल समझने वाला
अलभ्य अगम्य किन्तु प्रिय,

तुम आज भी वही हो
पाषाण !

- आनंद