बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

उसका खो जाना

वो खो गया
ठीक उसी समय
जब वो मिल रहा था
वो खो गया
ठीक वैसे ही
जैसे खो जाता है
ग़ज़ल का कोई मिसरा
समय से कागज़ पर न उतरा तो
कागज़ पर कहाँ उतर पाती हैं
जीवन की हर ख्वाहिशें,

मैं भूल जाऊंगा उसका खो जाना
शायद उसे भी, 
किन्तु याद रहेगा युगों तक
उसका मुझमें उतरना
जैसे गिरती है बिजली
किसी दुधारू पेड़ पर !

- आनंद

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

मुगालते

कुछ मजबूरियां
करतब समझी जाती हैं,
कुछ करतब
मजबूरी  में ही संभव हैं

कुछ दर्द ...
कविता को जन्म देते हैं
कुछ
कविता से दूर करते हैं,

मौत के कुएँ में गाड़ी चलाना
मजबूरी है, दर्द है
कविता है
या करतब ?

कुछ सपने चरितार्थ करते हैं अपना नाम
और रहते हैं ताउम्र
ठेंगहा यार की तरह जबरिया साथ

कुछ साथ ...
एकदम सपने की तरह
लाख कट्टी साधे पड़े रहो
नहीं शुरू होते दुबारा
एक बार टूट जाने पर,

तुम सपना हो,
साथ हो... या फिर दर्द ?

कुछ आँसू
आनंद बनकर बहते हैं आँख से
तो कुछ आनंद....
आँसुओं की राह मिलते हैं खाक़ में

मैं आनंद हूँ
आँसू हूँ
या खाक़ ?