गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

आज हर मर्द ही शक़ में शुमार है यारों .

इस क़दर गिर गया अपना मयार है यारों
आज हर मर्द ही शक़ में शुमार है यारों

शाम होते ही सहम जाती है बेटी मेरी
शहर है  या कोई  ख़ूनी दयार  है यारों

कौन जाने किधर से चीख उठेगी अगली
ज़ेहन में आजकल दहशत सवार है यारों

गुनाहगार के संग सोच भी सूली पाए
मेरा जरा सा अलहदा विचार है यारों

हर तरफ शोर है गुस्सा है भले लोगों में
गोया सागर में शराफत का ज्वार है यारों 

आइये कर सकें भरपाई तो करदें उसकी 
क़र्ज़ बहनों का अभी तक उधार है यारों

 - आनंद