मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

हादसों की दिल्ली ... सितम की राजधानी

जीवन रक्षक मशीन के सहारे
सफदरजंग अस्पताल की आई सी यू में
कुछ घंटे या फिर कुछ दिन और जियेगी एक लड़की
फिर या तो वह 'ठीक' हो जायेगी
या मर जायेगी


एक लड़की जो इस महान देश की ऐतहासिक राजधानी के
सबसे समृद्द इलाकों में से एक में
निकल पड़ी रात को घर से
बिना सायरन बजाती हुई गाड़ियों के काफिले के,
अकेले निकल पड़ी
केवल एक अपने पुरुष साथी के साथ
जुर्रत तो देखिये उस लड़की की
उसने समझा इस देश की राजधानी को शायद अपने गांव अपने घर की तरह सुरक्षित 
हर कोने हर नुक्कड़ हर संभव जगह पर घात लगाये बैठे  रहने वाले नर पिसाच
शायद छः थे वो
पैरामेडिकल कोर्स कर चुकी वह बहादुर लड़की जरूर लड़ी होगी
जी जान से किया होगा उसने विरोध
पर पहले उसे अधमरा कर दिया गया उसके साथी को भी लहूलुहान कर दिया गया
फिर एक -एक करके सब ने सिद्ध किया अपना पुरुष होना
और फिर जब दोनों हो गए अचेत
नहीं सह पाये अत्याचार
तो उन्हें मरा समझकर , चलती बस से ही
फेंक दिया गया एक फ्लाईओवर से नीचे ।

कैसी लगी यह कहानी
दर्दनाक है न ?
तो एक काम करो अपन-अपना कंप्यूटर ऑन करो
एक जगह है फेसबुक
वहाँ अपनी छवि चमकाते हैं हम सब मिलकर
देखते हैं कौन महिलाओं का सबसे बड़ा हितैषी साबित होता है
सामने रखी गरमागरम चाय सिप करते हुए
मुद्दे की गंभीरता से परचित कराते हैं 
देश और समाज को
आखिर हम जागरूक इंसान हैं भई !

जे एन यू के लड़के हैं न 
वो कर तो रहे हैं विरोध प्रदर्शन
"अब क्या करें जान दे दें क्या"
"और फिर मेरे जान देने से मसला हल हो जाए जान भी दे दें"

जान तो देती रहेंगी 
बच्चियां
औरतें 
अभी और न जाने कब तक ...
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’

आक्क थू
हाँ थूकता हूँ मैं
हम सबके ऊपर
अपने ऊपर भी !

-आनंद