सोमवार, 10 सितंबर 2012

बातें है बातों का क्या

तुमने तो कह दिया 
हँस कर 
मुझे 
पागल
माँ की एक बात याद आ रही है 
तभी से 
और 
सोंच रहा हूँ 
काश तुम्हारी जबान पर बैठी होती 
'सरस्वती' |
_________________________





करना चाहता हूँ 
एकदम नई शुरुआत 
पर
हे प्रिय मृत्यु !
तेरे सहयोग के बिना 
यह संभव नहीं |

और हे प्रिय जीवन ! 

खुश हूँ 
बल्कि
साफ कहूँ तो
तूने उम्मीद से ज्यादा निभाया है
काश मैं भी किसी के प्रति
इतनी
वफादारी निभा पाता |

______________________




सर्दियों में
सूरज
बहूऊऊऊउत दूर हो जाता है धरती से
तब कितनी अच्छी लगती है न धूप !
सच्ची बताना
दूर होने
और फिर अच्छा लगने का चलन
भगवान ने ही बनाया है क्या ?

वैसे एक बात बताऊँ
तुम दूर होकर
बहुत बुरे लगते हो
हाँ !
:( :(


- आनंद