बुधवार, 5 सितंबर 2012

नश्तर (२)

(एक)

कभी कभी मेरा बड़ा मन करता है 
कि मैं 
तुमसे बात करूँ 
उसमें भी 
कभी कभी मैं अपने को रोक ले जाता हूँ 
पर कभी कभी 
असफल भी हो जाता हूँ 
तब लिखता हूँ मैं ... कविता 

मेरी सारी कवितायेँ 
दरअसल मेरी असफलताओं का
दस्तावेजी प्रमाण हैं |

(दो)

एक तस्वीर 
बहुत पुरानी भी नहीं 
तुम 
बेतहाशा मुस्करा रहे हो 
तुम्हारी आँखों से 
छलका पड़ रहा है प्यार 
और छलक रहीं हैं 
मेरी आँखें 
तभी से |

(तीन)
इस बार जब भी
कविता लिखूंगा 

पूरी कोशिश करूंगा कि
तुमको न लिखूं
और अगर लिखूं भी तो 
किसी को कानों-कान खबर न हो

मेरे हुनर की
तारीफ करोगे न तुम ?

(चार)

हिचकी और चीख़  में
फर्क होता है 
भले दोनों की वजूहात एक हों 
घुटी हुई चीख भी 
चीख ही होती है 
जिसे सुनना 
किसी की भी जिम्मेदारी नहीं है |

(पाँच)

नाराज़ किसी और से होना 
और सज़ा खुद को देना 
बड़ी अजीबोगरीब रस्मों का नाम है 
इश्क,
क्या हो जब 
नाराजगी हद से बढ़ जाए 
और फिर सज़ा भी ...

मैं इन सब झमेलों से दूर हूँ 
मेरा जिंदा रहना 
इस बात का सुबूत है |

(छः)

तनहा डगर पर पहला कदम
जैसे घात ही लगाये बैठे थे
एक साथ इतने तूफ़ान,
हर बार यही मन किया कि लौट जाऊं
पीछे मुड़कर देखा भी,
तुम नहीं थे 
होने का कोई चिन्ह भी नहीं
लौटता तो कहाँ
किसके लिए
और मैं चल पड़ा

कई बार मजबूरियाँ भी
बहादुरी बन जाती हैं |

(सात)

जैसे चोट देना 
तुम्हारी फितरत है 
वैसे ही 
उम्मीदें लगाना मेरी, 
बेशक... 
मैं कुत्ते की पूँछ हूँ |

(आठ)

मैं 
कोई दुःख पसंद इंसान नहीं 
खुश हो जाता हूँ 
बहुत छोटी छोटी बातों पर 
तुम चाहो तो
हँसता भी रह सकता हूँ 

पर तुम 
ऐसा क्यों चाहोगी ?
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- आनंद