मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

अब क्या जबाब दें ...




जो खुद गुलाब है वो हमें  क्या गुलाब दें
इतने हैं लाज़बाब, कि अब  क्या जबाब दें

मुझको हर एक रस्म निभाने का शौक था
कैसे हुए खराब,  कि अब क्या जबाब दें

अहसास की बातों को अहसास ही रहने दें
मत पूछिए जनाब,  कि अब क्या जबाब दें

वो तो कमाल थे ही हम भी कमाल निकले
कैसे कटी शबाब,  कि हम क्या जबाब दें

कितनी मिली मोहब्बत औ कितना दर्द पाया
मत पूछिए हिसाब,  कि अब क्या जबाब दें

यूँ  तो हज़ार  चेहरे  'आनंद'  झांक  आया
सब पर मिली नकाब, कि अब क्या जबाब दें

-आनंद द्विवेदी
७ फरवरी २०१२