बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

ऐसा मुमकिन कम है ..................यादें बस यादें.... जो है नितांत अपनी !!



हो सकता है कभी याद तुमको आजाऊं 
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है

हो सकता है कभी उन्हीं राहों से गुजरो
हो सकता है उस नदिया तक फिर जाना हो
हो सकता है साजन तेरा मिलने आये
हो सकता है उस बगिया तक फिर जाना हो
हो सकता है फिर से वो चिड़ियों का जोड़ा
देखे तुमको आँखों में कुछ विस्मय भरकर
हो सकता है गीत वही फिर टकरा जाएँ
डूब गये थे हम गहरे जिन को सुन सुन कर

पल भर को चितवन में बस मैं ही छा जाऊं 
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है

हो सकता है फिर से वही चांदनी छाये
हो सकता है नौका में बैठो फिर से तुम
हो सकता रिमझिम सावन फिर से बरसे
बहती धारा में मुमकिन पैठो फिर से तुम
तेरे बालों की  मेहँदी की खुशबू शायद
हो सकता है कभी किसी को पागल करदे
गोरे गोरे पांव चूम ले कोई शायद
बस इतनी सी बात नयन में बादल भर दे

तुम फिर गाओ गीत और मैं सुन भी पाऊं
ऐसा मुमकिन कम है लेकिन हो सकता है !!

आनंद द्विवेदी
१० जनवरी २०१२