गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

भाव की झंकार ही संगीत है


मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मौन है रजनी गहन तम मौन है
मौन है पीड़ा जलन भी मौन है
शब्द से ध्वनि से जगत को क्या रिझाऊं
आत्मा है मौन प्रियतम मौन है

जो अमर है वो मरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा..

शब्द भी है नाद भी है, आत्मा भी
नृत्य करता अहिर्निशि परमात्मा भी
भाव की झंकार ही संगीत है
अब अकेले का जगत ही मीत है

शम्भु कोई विष-वरण से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

मैं नही जानूँ कुमारग क्या बला है
कब कोई दरवेश मारग पर चला है
कोई भी मंजिल नहीं इच्छित हमारी
दूरियाँ लगतीं हृदय को बहुत प्यारी

पथिक कोई भी, डगर से क्या डरेगा
मौन का साधक तिमिर से क्या डरेगा

-  आनंद