शनिवार, 26 नवंबर 2011

हे राधा माधव हे कुञ्जबिहारी !



हे वृषभान नंदिनी !
लोग कहते हैं
आप और वो
एक ही हैं
एक दूसरे में समाये हुए
अपृथक
ऐसा है तो
आप को तो सब पता ही होगा न
मुझ पर करुणा कर माँ
एक बार ...बस एक बार
बोल उनको
निहार लें उसी बांकी चितवन से
जिससे नज़रें मिलने के बाद
और सब कुछ
भूल जाता है फिर !



और माधव !
तुम
शरणागत को
कैसे डील करते हो यार  ?
"सर्व धर्मान परित्यज्य
मामेकं शरणं ब्रज "
बस बातें लेलो 'तेरह सौ की'
छुड़ाओ न सब ...
मेरे बस का होता तो
क्यों चिरौरी करता
बार बार तुमसे ...

वैसे एक बात बोलूं
तुम्हारी आँखों में न
काजल बहुत जमता है
मैं तो
जब भी देखता हूँ न
सेंटी हो जाता हूँ  !!  :) :)

२६/११/२०११