गुरुवार, 30 जून 2011

तुमने फिर से वहीं मारा है ज़माने वालों







हर तरीका मेरा  न्यारा है,  ज़माने वालों ,
आज कल वक़्त हमारा है, ज़माने वालों !

जख्म रूहों के भरे जायेंगे, कैसे मुझसे ,
तुमने फिर से वहीं मारा है, ज़माने वालों !

दो घड़ी चैन से तुमने जिसे जीने न दिया,
किसी की आँख का तारा है, ज़माने वालों !

बेवजह ही नहीं मैं बांटता, जन्नत के पते,
मैंने कुछ वक़्त गुज़ारा है, ज़माने वालों  !

कौन कम्बख्त भला होश में रह पायेगा ?
जिस तरह उसने निहारा है, ज़माने वालों !

आज 'आनंद' की दीवानगी से जलते हो ,
तुमने ही उसको बिगाड़ा है, ज़माने वालों !

       आनंद द्विवेदी १६-०५-२०११