मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

कहाँ पर खो गया हूँ मैं ?


कहाँ पर खो गया हूँ मैं ?
              जिंदगी के शीत को सहकर ,
              व्यथा का  ताप  सहकर   ,
              सत्य को पहचानकर, ढोकर,
              समय का... श्राप सहकर ,
खिलौना  हो गया हूँ मैं  !
             
              स्वयं को भी ...बेंचकर,
              भीतर हजारों ग़म छिपाकर,
              एक विधवा सी ...ख़ुशी से ,
              होंठ  रंगकर, मुंह सजाकर, 
घिनौना हो गया हूँ मैं !

               ढह गए सब शिखर, थककर 
               सो गए... सब दीप  गण , 
               ख़ुशी की चाहत समेटे  ,
               सो गए ..  प्रत्येक क्षण  ,
बिछौना   हो गया  हूँ मैं !
कहाँ पर खो गया हूँ मैं  !!

      --आनन्द द्विवेदी  ०८/०२/२०११



मैं ही मिला हूँ उससे गुनहगार की तरह


उसने तो किया प्यार मुझे 'प्यार' की तरह,
मैं ही मिला हूँ उससे गुनहगार की तरह !

कुछ  बेबसी  ने  मेरे  पांव  बाँध  दिए थे,
कुछ मैं भी खड़ा ही रहा दीवार की तरह !

इस दिल में सब दफ़न है चाहत भी आरजू भी ,
मत खोदिये मुझे, किसी मज़ार  की तरह !

देने को कुछ नही था मिलता मुझे कहाँ से
दुनिया के क़ायदे हैं, बाज़ार की  तरह  !

खारों पे ही खिला किये हैं गुल ये सोंचकर,
मैं जिंदगी को जी रहा हूँ खार की तरह  !

खामोश निगाहों की तहरीर पढ़ सको तो,
'आनंद' भी मिलेगा तुम्हे यार की तरह !!