गुरुवार, 13 जनवरी 2011

ईश्वर देखता हूँ मैं !


एक अँधेरी गुफा...
अस्पष्ट भित्तियों पर उभरा है
बिलकुल स्पष्ट  ...हर दृश्य जिंदगी का !

इसमें है ....
घुट गया स्वाभिमान..
दुकानों पर उधार के बदले,
तौले गए सामन सा पैक है 'प्यार'.
एक विशेष लिफाफे में
मैंने पाया है इसे (प्यार को)
तराजू पर सारी जिंदगी चढाने के बाद!!

इसमें है....
इच्छाओं का संग्रह
उचित या अनुचित जो भी की हैं मैंने ईश्वर से
पाया है मैंने हर बार....
कुछ न पाने का विश्वाश,
देखा है अपने हर सपने को झूठ होते हुए,
इतने करीब से कि
मैं ही झूठा हो गया मालूम होता हूँ !!

इसमें है.....
एक आशा किसी को पाने की
नही-नही....
किसी पर न्योछावर हो जाने की,
झूठ या सच
वही जाने !

इसमें है....
एक ईश्वर 'भी'..
जो आँखों में झिलमिलाते मोतियों के बिम्ब में
बहुत धुंधला दिखाई देता है ,
जब कभी मैं....
नीलाम हो रहा होता हूँ किसी अनचाही जगह,
जब कभी मैं....
ख़रीदा जा रहा होता हूँ कहीं ताकत से,
जब कभी मैं....
टूट रहा होता हूँ किन्ही मजबूरियों से,
तब-तब...
मैं ईश्वर देखता हूँ,
बेबस अपने अन्दर........और....
मुस्कराता हुआ अपने बाहर !!

       --आनंद द्विवेदी २०-०१- १९९३ !