शनिवार, 25 दिसंबर 2010

खुदा भला करे इनके खरीददारों का

रंग हल्का नही होगा कभी दीवारों का,
उसने ले रखा है ठेका, यहाँ बहारों का !

लोग थकते नही  करते सलाम दरिया को,
हाल पूछेगा कौन ढह रहे किनारों का  !

ईद का चाँद आपको भी नज़र आ जाये,
काम फिर क्या बचेगा, सोंचिये मीनारों का ?

गौर से देखिये हर चीज़ यहाँ बिकती है,
खुदा भला करे, इनके खरीददारों का !

मैंने हर जख्म करीने से सजा रखा है,
दिल भी अहसानफरामोश नही यारों का !

तमाम मुल्क का दुःख दर्द दूर कर देंगे,
चल रहा इन दिनों अनशन 'रंगे सियारों' का ! 

भूख कि छत तले 'आनंद' दब गया यारों,
दोष इसमें नही, टूटी हुई दीवारों का  !!