शुक्रवार, 26 मार्च 2010

मेरी ग़ज़ल से कहीं भूख जो मिटी होती

मेरी ग़ज़ल से कहीं भूख जो मिटी होती,
किसी गरीब की इज्ज़त नहीं लुटी होती |

कोई फुटपाथ पर भूखा नहीं सोया होता,
मेरी कलम से अगर रोटियां बटी होती |

मेरी ग़ज़ल है वो झुर्री भरा बूढा चेहरा,
कैसे इज्ज़त को छुपाये है इक फटी धोती |

भरी जवानी में भूखा नहीं सोया होता,
वक़्त से पहले कमर भी नहीं झुकी होती |

अगर ईमान बेंचकर वो कमाता दौलत,
ब्याह करने को नहीं बेटियाँ बची होती |

           ---आनंद द्विवेदी .